Thought Puree

लोहे के दरवाज़े

अवनी ने फ्लैट का दरवाजा खोला। सामने सफाई वाली कमला खड़ी थी। “आओ, सुबह से इंतज़ार कर रही थी।” अवनी दरवाज़ा बंद कर रही थी कि ठीक सामने वाले फ्लैट से अगरबत्ती की मोहक खुशबू कोरिडोर में फैल गयी। पूजा के मंत्र की आवाज़ आ रही थी। लकड़ी का दरवाज़ा थोड़ा खुला था मगर ग्रिल बन्द थी। चलो पड़ोस में कोई है सोच कर अवनी ने दरवाजा बंद कर लिया।

देर रात आफिस से लौटी तो लिफ्ट बंद होते होते एक बेडौल आदमी ने अपना हाथ लिफ्ट के दरवाज़े के बीच में लगाया और अवनी के करीब आ कर खड़ा हो गया। महँगी घड़ी, परफ्यूम मगर पास से शराब की बू आ रही थी। अवनी दरवाज़े के करीब खड़ी हो गयी। जब फ्लोर आया तो वो आदमी उसे धकियाते हुए सा बाहर निकला और उसके सामने वाले फ्लैट में दाखिल हो गया। ‘हुंह, पारिवारिक लोगों की सोसायटी’ उसे मकान मालिक की बात याद आ गयी। अकेली कामकाजी महिला को फ्लैट देने में न नुकुर हज़ार सवाल करने वाले लोग, उन्हें ऐसे पियक्कड़ लोगों से कोई तकलीफ नहीं होती।

टीवी ऑन करने लगी थी कि अचानक किसी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी। कौन है?अवनी ने बालकनी से नीचे झाँक कर देखा। यहां तो पूरा सन्नाटा है। दरवाज़ा खोल कर देखने की कोशिश की तो आभास हुआ कि सामने वाले फ्लैट से किसी औरत के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी। अवनी ने दरवाज़ा बंद कर लिया।

सुबह दूध के पैकिट उठाने गयी तो सामने एक स्त्री दिखी, अस्तव्यस्त से बाल और चेहरे पर नीला निशान। उसने छुपाने की कोशिश की और अवनी को फीकी सी मुस्कान के साथ देख कर अंदर चली गयी।

अक्सर आते जाते वो दरवाज़े पर दिख जाती। उम्र कुछ चालीस के ऊपर होगी, अवनी को देख कभी कभार मुस्कुरा देती और कभी कुछ औपचारिक सी बातचीत हो जाती। आज सुबह वो रंगोली बना रही थी, अवनी को देख उसे रोका और प्रसाद लाकर दे दिया। जल्दी में अवनी प्रसाद ले प्रणाम कर आफिस को चली गयी। इस इतवार ज़रूर इनसे इत्मीनान से मिलूँगी।

उस दिन शाम को अवनी की सहेली विभा उसके साथ घर आ गयी थी। शनिवार घर पर खाना बनाने और टीवी पर फ़िल्म देखने का कार्यक्रम बनाया था।

दोनों बतिया रही थीं कि फिर किसी के ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने और रोने की आवाज़ सुनाई दी। “ये कौन है?” विभा ने पूछा। “अरे मत पूछ, ये सामने वाले फ्लैट में चलता रहता है। सीधी सादी सी पत्नी के साथ एक पढ़ा लिखा जाहिल नशे में मार पीट करता है और सब चुपचाप सुनते रहते हैं। वो खुद भी किसी से कुछ नहीं कहती, छुपाती है। कहने को बड़े पारिवारिक लोगों की सोसाइटी है मगर ये सब होता है और लोग चुप तमाशा देखते सुनते रहते हैं। मुझे घर देने से पहले पूरी जन्मपत्री छान ली थी मकान मालिक ने, कि कौन आएगा, कौन जाएगा, कितने बजे लौटती हूँ, बॉयफ्रेंड कौन है वगैरह!”
“सच कह रही है अवनी, सारी रोक टोक बस औरतों के  लिए है हमारे सभ्य समाज में। इन लोहे के दरवाजों के पीछे न जाने कितने घिनौने सच छुपे हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। हम में से कोई सुरक्षित नहीं, इनके पीछे कल तू और मैं भी हो सकते हैं, जब तक हम आवाज़ न उठाएं…”

विभा कुछ और कहती इससे पहले फिर रोने की आवाज़ें आने लगीं। विभा रुक न सकी, धड़धड़ाती हुई गयी और सामनेवाले घर की घंटी बज दी।

लुंगी पहने, सामने उस आदमी ने दरवाज़ा खोला।
“कौन?”
“अपनी पत्नी को बुलाइए।”
“क्यों? क्या काम है?” नशे में उसकी ज़ुबान लड़खड़ा रही थी।

पीछे से उसकी पत्नी दिखाई दी। अवनी को देख कर वो झट आयी और उसके गले लग गयी।

“तुम दोनों यहां से जाओ,मेरे घर में दखल मत दो वरना अभी तुम्हारी शिकायत सोसाइटी में करनी पड़ेगी।” वो गुर्रा कर बोला।

“बिल्कुल करो” , विभा ने अपना आइडेंटिटी कार्ड दिखाते हुए कहा। “इंस्पेक्टर विभा गौर, क्राइम ब्रांच।”

(Image credit: Styleatlife.com)

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