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पुराने गिले शिकवों को मुल्तवी किया जाए
क्यों न कोशिश कर नए ढंग से जिया जाए
तल्ख़ आवाज़ों के शोर में जो डूब गयी ग़ज़ल
इस ख़ामोशी को तरन्नुम में पिरो ही दिया जाए
इस मोड़ पर आकर बिखरे थे रास्ते
उस चौराहे से फिर नया सफर शुरू किया जाए
न तेरा न मेरा, ये दोनों का आशियाँ
क्यों न बंज़र ज़मीनों को ग़ुल किया जाए
बढ़ाओ हाथ तुम, हम तराशें पत्थरों में रास्ते
चलो इस सूखते दरिया को समंदर किया जाए ।