पकड़ अंगुली मेरी छोटी,
ठुमक ठुमक कर चलती थी
गले डाल कोमल सी बांहें,
घंटों झूला करती थी
कर कौतूहल से विस्मित अंखियाँ,
ढेरों किस्से सुनती थी
ज़रा उदास हो जाऊं मैं,
झट गलबहियां करती थी
दादी अम्मा सी ढेरों बातें,
देर रात तक कहती थी
हो जाऊं उस पर गुस्सा जो,
घंटों रूठी रहती थी
जन्मदिन पर फ्रॉक पहनकर,
कितना खुद पर इतराई थी
नए खिलौने की ज़िद पर अड़,
कैसी आफत फैलाई थी
तस्वीरों से निकल अचानक,
सामने मेरे खड़ी हो गयी
मैं माँ थी माँ ही रह गयी,
बिटिया मेरी बड़ी हो गयी
तस्वीरों में देख के बचपन,
मैं अक्सर खो जाती हूँ
अब भी जब सो जाए
अक्सर लोरी उसे सुनाती हूँ।
(Image: Unsplash)