KavitaPoetry

बालपन

पकड़ अंगुली मेरी छोटी, ठुमक ठुमक कर चलती थी गले डाल कोमल सी बांहें, घंटों झूला करती थी कर कौतूहल से विस्मित अंखियाँ, ढेरों किस्से सुनती थी ज़रा उदास हो जाऊं मैं, झट गलबहियां करती…

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बरखा

फिर घिर आईं घटाएं काली, बरसन लगीं बूंद मतवाली ऊष्म धरा की तृप्त पिपासा, त्रस्त कृषक की जागी आशा। परबत नदी गगन जल प्लावित, इंद्र देव अवनी पर मोहित बरखा की बूंदों में नहाये, खग…