Kavita

विकल्प

तय नहीं कर पाते हम

कि ज़िंदगी को कैसे जिया जाए

दौड़ते रहें रेसकोर्स में घोड़ों की मानिंद

रेंगते चलें कछुए की चाल धीमे धीमे या

चुपके से खरगोश बन एक मीठी नींद सो ही लें।

तेज़ रफ़्तार के जहाज में हों सवार या

रेल की खिड़की से पेड़ गिनें

चाहे रास्ता पकड़ें कोई भी

कुछ न कुछ तो पीछे छूट ही गया

चाँद को पा लिया मगर

अफसोस सितारों का हाथ छूट गया।

‘This post is a part of Blogchatter Half Marathon.’ The hyperlink will be: https://www.theblogchatter.com/ (

Image: Unsplash)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *