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बोझ

दिल पर इतना बोझ न रखो, सिमटी इतनी सोच न रखो ले उधार शब्द थोड़े से दिल को जी भर कुछ कहने दोI जोड़ तोड़ दुनियादारी में, बेचारे मन को न कसोI दो लम्हा मन…

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इमारतें

ये ऊँची इमारतें इनके नीचे दफन है कुछ पेड़, कुछ पंछियों के नीड़ शायद कोई संकरी गली छप्परों से ढकी जो झुग्गियों में तब्दील हुई कोई बहती नदी जो धीरे धीरे नाले में बदल गयी…
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धनवान

नियामतें हैं बिखरी चारों ओर धरती, आसमान, दरख़्त, जंगल चिड़ियों का कलरव, हवाओं के गीत पानी की सरगम, पेड़ों का संगीत सुन पाओ तो ध्यान से सुनो मन के कोलाहल से ऊपर निकल कर अपने…
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विकल्प

तय नहीं कर पाते हम कि ज़िंदगी को कैसे जिया जाए दौड़ते रहें रेसकोर्स में घोड़ों की मानिंद रेंगते चलें कछुए की चाल धीमे धीमे या चुपके से खरगोश बन एक मीठी नींद सो ही…

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जीवन चाक

आज़मा कर तो देखो शायद हाथ तुम्हारे बने हों गीली मटमैली माटी के लिए बनाने को सुंदर प्याले तश्तरियां जीवन के घूमते चाक पर सुगढ़ उंगलियां कर दें मूर्त नन्ही कोंपलों को सूरज से मेल…
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हर घड़ी

हर घड़ी एक उड़ता विचार एक सुंदर स्वप्न एक घुमड़ती कविता एक बरसती कहानी बिसरा कोई गीत आंख मिचौनी खेलती यादें छत से झांकता चेहरा पुरानी किताब पर लिखी तारीख कंधे पर किसी अपने का…
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जीने का ढंग

गुज़रते वक़्त के साथ गुज़रती जाती हैं न जाने कितनी ख़्वाहिशें रखा जाता है हर अधूरी ख़्वाहिश का हिसाब दिल के उदास कोने में। न जाने क्यों नहीं रख जाता उन ख्वाबों का हिसाब जो…

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KavitaUncategorized

ऐसा तो होता रहता है

1) ऐसा तो होता रहता है किसी राह पर चलते चलतेउससे विरक्त होनापीछे मुड़ सोचनाकि दूसरा रास्ता लिया होतातो सफर शायद बेहतर होतामगर हर पथ मांगता हैराही से एक हठतय किये रास्तों परअविरल चलते जाना।रास्ता…
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पिंजरे

जब घर की औरतों के सर उठते हैं तो न जाने क्यों लोग घबराने लगते हैं कौन सी बात निकल कर आ जाये बाहर इस डर से थरथराने लगते हैं जिस पेड़ की छांव में…